Math Pedagogy : गणित शिक्षण की समस्याएं तथा उनके समाधान हेतु NCF-2005 की सिफारिशें

गणित शिक्षण की समस्याएं :

Ncf-2005 ने गणित शिक्षण की निम्नलिखित समस्याओं पर प्रकाश डाला है

बच्चों में गणित के प्रति डर व असफलता का भाव रहता है इसके कारण निम्न हैं 

  1. गणित की पूरक प्रकृति के कारण गणितीय समस्याओं को समझने में कठिनाई होती है जैसे अगर किसी बच्चे को दशमलव में कठिनाई है तो उसे प्रतिशत भी कठिन लगेंगे।
  2. गणित में प्रतीकात्मक भाषा का प्रभुत्व है जिसके कारण बच्चों में गणित में अरुचि, नीरसता और घबराहट होने लगती है और बच्चा मनोविच्छेदित महसूस करता है।
  3. सामाजिक भेदभाव के कारण लड़कियों को गणित के शिक्षण में अयोग्य माना जाता है। 
  4. गणित में उपयोग की गई भाषा दैनिक जीवन की भाषा से अलग होती है।

निराशाजनक पाठ्यचर्या

  1. गणित की पाठ्यचर्या ज्यादा फोकस विधियों और सूत्रों के ज्ञान को देती है।
  2. कमजोर विद्यार्थियों के लिए पाठ्यचर्या उधार दिए गए तथ्यों के भंडार की तरह है।
  3. लगनशील बालकों के लिए पाठ्यचर्या तथ्यात्मक गहराइयों चुनौतियां प्रदान नहीं करती जिससे उनकी योग्यता सीमित रह जाती है।

अपरिष्कृत मूल्यांकन

  1. गणित में वीडियो एवं सूत्रों का प्रभुत्व रहता है और यह मूल्यांकन व निर्धारण की प्रकृति के कारण है।
  2. मूल्यांकन बच्चे की गणितीय विधि की जान और तथ्यों और था सूत्रों को याद करने की क्षमता को जानने के लिए किया जाता है।

शिक्षक की अपर्याप्त तैयारी

  1. अच्छी पुस्तक केंद्रित अध्यापन बिरहा शिक्षक की स्वयं की गणितीय की गतिविधि को सुस्त बना देती है।
  2. शिक्षक की अपर्याप्त तैयारी बच्चों को महत्वपूर्ण प्रेरणा और प्रोत्साहन से वंचित कर देती है।

व्यवस्थागत समस्याएं

  1. गणित शिक्षकों कोष्ठीकरण अर्थात विभिन्न स्तर के शिक्षकों में संवाद की कमी।
  2. गणित शिक्षक के आकार का ऊंचा और तकुआकार होना। 
  3. अधिगम योग्यताओं का लिंग संबंधी धारणाओं से ओतप्रोत।

समस्या समाधान हेतु गणित शिक्षण के लिए NCF-2005 द्वारा की सिफारिशें :

  1. गणित शिक्षण समाधान हेतु ncf-2005 ने निम्नलिखित सिफारिशें की हैं।
  2. गणित शिक्षा का फोकस संकीर्ण लक्ष्यों से हटाकर ऊंचे लक्ष्य की तरफ हस्तांतरित करना।
  3. संकीर्ण लक्ष्यों से ऊंचे लक्ष्यों की फोर बदलाव से तात्पर्य गणितीय विषय वस्तु से गणित अधिगम वातावरण की ओर है।
  4. इसको लेकर इतनी ज्यादा जोर तथ्यात्मक ज्ञान प्रक्रियात्मक प्रवाह और संकलनात्मक समझ पर दिए जाने की जरूरत है ताकि अनुभव एवं पूर्व ज्ञान के जरिए नए ज्ञान का निर्माण हो।
  5. समस्या समाधान गतिविधियों आदि से अधिगम वातावरण का निर्माण करना ताकि बच्चों में सहभागिता बढ़ें एवं सफलता का भाव पैदा हो।
  6. उदीयमान गड्ढों के सामने संकलपनात्मक चुनौतियां प्रदान करना।
  7. आकलन पद्धतियों को बदलना ताकि बच्केचों के प्रक्रियात्मक ज्ञान के स्थान पर गणितीकरण योग्यताओं की परख हो।
  8. अमूर्तन, सांख्यिकीकरण अनुरूपता प्रकरण विश्लेषण सरल परिस्थितियों में रूपांतरण अनुमान एवं सत्यापन तकनीकों का संदर्भगत ज्ञान प्रदान करना।
  9. समयानुसार उपागम की उपयुक्तता को बताना।
  10. जब सटीक हल मौजूद ना हो तब राशियों के अनुमानों हलो के सन्निकटन का प्रयोग होता है विद्यार्थियों में इन दोनों आवश्यक कौशल का विकास करना चाहिए।
  11. बच्चों में इस्तीकरण का विकास करना जब कोई समान तय रकम से कम पर खरीदा जाए या दो विभिन्न रास्तों के द्वारा एक मंजिल पर पहुंचना हो तब प्रत्येक अपनी लाभ एवं हानियां होती हैं इसे इस्तीकरण कहते हैं अतः बच्चों में उपलब्ध सूचना के आधार पर, इस्तीकरण, के बुद्धिमत्ता पूर्ण चयन के कौशलों का विकास करना चाहिए इससे गणित को आनंदमय एवं प्रत्यक्ष रूप से उपयोगी बनाया जा सकता है।
  12. विद्मेंयार्थियों में दृश्यीकरण प्रत्यक्षीकरण और निरूपण कौशलों का विकास करना।
  13. समझाऊं आकारों एवं रूपों का उपयोग कर निरूपण का विकास किया जा सकता है ऐसे निरूपण दृश्यीकरण को बढ़ावा देते हैं एवं बच्चों में कल्पना शक्ति एवं तार्किक क्षमता का विकास करते हैं।
  14. बच्चों में तर्क तर्कों का मूल्यांकन करना निराधार कल्पनाओं को बनाना और उनकी जांच करना आदि को विकसित करना चाहिए।
  15. स्कूली गणित का बच्चों में सामाजिक वातावरण के साथ गहरा का संबंध होना चाहिए।
  16. खुले हुए प्रश्नों को बढ़ावा देना चाहिए।
  17. जो लोग औपचारिक रूप से पढ़े लिखे नहीं होते हैं वे मानसिक गणित की कई विधियों का उपयोग करते हैं जिन्हें लोक दशमलव प्रणाली कहा जाता है इस प्रणाली का विकास बच्चों ने भी करना चाहिए।
  18. गणित शिक्षा में सर्वात्रिक समावेश होना चाहिए अर्थात गणित शिक्षा सभी के लिए होनी चाहिए गणित शिक्षा जेंडर आधारित या फिर शारीरिक एवं मानसिक रूप से समर्थ बच्चों के लिए ही नहीं होना चाहिए।
  19. गणित की पाठ्यपुस्तक विविधतापूर्ण विषय वस्तु प्रदान करने वाले होनी चाहिए।
  20. आकलन के सभी तरीकों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  21. ग्राफ पेपर, जियो बोर्ड, गिनतारा, ज्यामिती बाक्स आदि के प्रयोग पर बल देना चाहिए।

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